साल 2009 से 2013 के बीच फर्जी बिलों के आधार पर किए गए करोड़ों रुपए के भुगतान को लेकर दायर याचिकाओं पर बुधवार को नैनीताल हाईकोर्ट ने सुनवाई की। साथ ही कोर्ट ने तेल घोटाले में शामिल मंत्रियों और अधिकारियों पर अबतक क्या कार्रवाई की गई है, इस संबंध में अगले एक हफ्ते के भीतर शपथ पत्र दाखिल करने के निर्देश दिए हैं। उत्तराखंड में स्वास्थ्य विभाग से जुड़ा तेल घोटाला साल 2009 से 2013 के बीच का है। उस दौरान करीब एक करोड़ 38 लाख रुपए टैक्सियों के तेल बिल के रूप में भुगतान किया गया था। उस दौरान मुख्यमंत्री कार्यालय की ओर से दिए गए आदेशों पर ही चुनाव में टैक्सियां संचालित की गई थी। जिसका भुगतान स्वास्थ्य विभाग ने किया था। घोटाले की बात सामने आने के बाद साल 2014 में तत्कालीन डायरेक्टर डॉ ललित मोहन गुसाईं के नेतृत्व में बनाई गई कमेटी ने पूरे मामले की जांच की थी।
जांच में पता चला कि देहरादून, उधमसिंह नगर, हरिद्वार और टिहरी के सीएमओ ऑफिस के साथ ही बड़े हॉस्पिटलों के फर्जी तेल बिलों के भुगतान के लिए मुख्यमंत्री कार्यालय से आदेश कराए गए। मामले में ट्रेवल एजेंसी समेत 13 नए और पुराने सीएमएस, सीएमओ भी कार्रवाई की जद में आ गए थे। उस दौरान तत्कालिन स्वास्थ्य महानिदेशक ने शासन को जांच रिपोर्ट सौंप दी थी। साथ ही इस पूरे मामले की उच्च स्तरीय जांच करने की भी संस्तुति की गई थी।
मामला मुख्यमंत्री कार्यालय और स्वास्थ्य मंत्रालय से जुड़ा होने के चलते तत्कालिन स्वास्थ्य मंत्री सुरेंद्र सिंह नेगी ने संबंधित ट्रेवल एजेंसी के खिलाफ मुकदमा दर्ज करने के निर्देश भी दिए थे. लेकिन उस दौरान मंत्री ने मुकदमा दर्ज करने के निर्देश से यू टर्न ले लिया और न्याय विभाग से सुझाव मांगा था। शासन, विभागीय और ऑडिटर स्तर पर हुई मामले की जांच में भी घोटाले की पुष्टि हुई थी। साथ ही इस मामले पर चारों जिलों में एफआईआर तक दर्ज करा दी गई। बावजूद इसके तेल घोटाले में संलिप्त लोगों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं हो सकी।
अब नैनीताल हाईकोर्ट ने सरकार से अगले एक हफ्ते के भीतर तेल घोटाले में की गई कार्रवाई के संबंध में शपथ पत्र दाखिल करने के निर्देश दिए है।