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श्रद्धालुओं ने सरयू गोमती संगम मे लगाई आस्था की डूबकी,सूरजकुंड घाट मे उपनयन संस्कार के लिए बड़ी संख्या मे पहुचे लोग।

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सूर्य के दक्षिणायन से उत्तरायण में आते ही कुमाऊं की काशी बागेश्वर में माघ महीने के पहले दिन आज पवित्र सुरजकुंड में उपनयन संस्कार हुवे। कुमाऊं और गढ़वाल से आए लोगों ने अपने बच्चों का उपनयन संस्कार कराया। श्रद्धालुओं ने सरयू नदी में स्नान किया व बागनाथ मंदिर में पूजा अर्चना की। श्रद्धालुओं ने स्नान के बाद भगवान सूर्य को अर्घ्य दिया और सरयू पूजन किया।

कुमाऊं समेत गढ़वाल के दूर—दराज से लोग बाबा बागनाथ की भूमि में ही बच्चों के उपनयन संस्कार को महत्ता देते हैं। आज मकर सक्रांति पर बड़ी संख्या में उपनयन संस्कार हुए। जिले के बाहर से भी लोग उपनयन संस्कार के लिए बागेश्वर पहुंचे। कोरोना संक्रमण के कारण इस बार भी उत्तरायणी का मेला नहीं मनाया जा रहा है, लेकिन धार्मिक आयोजनों पर किसी तरह की रोक नहीं है। विद्वजनों का मानना है बागेश्वर की पवित्र धरती पर उपनयन संस्कार की बहुत महत्ता है। पवित्र पावनी सरयू नदी का यहीं से उदगम है।

कुमाउं और गढ़वाल से अपने बच्चों के उपनयन संस्कार के लिए बाबा बागनाथ धाम आए श्रद्वालुओं ने पवित्र सरयू नदी में स्नान करने के उपरांत उपनयन संस्कार समपन्न कराये। बागेश्वर बाबा बागनाथ की नगरी में मकर संक्रांति के मौके पर स्नान और सूरजकुंड में जनेऊ संस्कार का विशेष महत्व माना जाता है। जिसके लिए लोग यहां दूरदराज से पहुंचते हैं। आज मकर संक्राति पर जनेऊ संस्कार के लिए दूर-दराज के गांव समेत कई जिलों से जनेऊ संस्कार करने लोग अपने परिवार के साथ पहुंचे।

गौरतलब है कि कुली बेगार का अंत उत्तरायणी मेले के दौरान 14 जनवरी, 1921 में कुमाऊं केसरी बद्री दत्त पाण्डे की अगुवाई में हुआ था। इसका प्रभाव सम्पूर्ण उत्तराखण्ड में था, कुमाऊं मण्डल में इस कुप्रथा की कमान बद्री दत्त पाण्डे जी के हाथ में थी, वहीं गढ़वाल मण्डल में इसकी कमान अनुसूया प्रसाद बहुगुणा के हाथों में थी। 13 जनवरी 1921 को संक्रान्ति के दिन पुनः वृहत् सभा हुई और 14 जनवरी को कुली बेगार के रजिस्टरों को सरयू में प्रवाहित कर कुली बेगार का अंत किया गया। 28 जून 1929 को राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने बागेश्वर की यात्रा की और ऐतिहासिक नुमाइशखेत में सभा कर इस अहिंसक आंदोलन की सफलता पर लोगों के प्रति कृतज्ञता जताई थी।

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