हिंदू धर्म में पितृपक्ष के दिनों का बहुत ही खास महत्व है. हमारे परिवार के जिन पूर्वजों का देहांत हो चुका है, उन्हें हम पितृ मानते हैं. मृत्यु के बाद जब व्यक्ति का जन्म नहीं होता है तो वो सूक्ष्म लोक में रहता है. फिर, पितरों का आशीर्वाद सूक्ष्मलोक से परिवारवालों को मिलता है. पितृपक्ष में पितृ धरती पर आकर अपने लोगों पर ध्यान देते हैं और उन्हें आशीर्वाद देकर उनकी समस्याएं दूर करते हैं। पितरों को मानने के लिए धरती पर तीन स्थान बताए गए हैं। जिसमें से दो स्थान उत्तराखंड के हरिद्वार का नारायणी शिला और चमोली जिले में बदरीनाथ धाम है. वहीं एक स्थान बिहार का गया जी हैं
पुराणों में बताया गया है कि जब सूर्य कन्या राशि में आता है, तब श्राद्ध पक्ष शुरू होते हैं. इस ग्रह योग में पितृलोक पृथ्वी के सबसे करीब होता है. यह ग्रह योग आश्विन कृष्ण पक्ष में बनाता है. श्राद्ध संस्कार का उल्लेख कई हिंदू ग्रंथों में मिलता है. श्राद्ध पक्ष को महालय और पितृ पक्ष के नाम से भी जाना जाता है. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार श्राद्ध का मतलब अपने देवताओं, पितरों, परिवार और वंश के प्रति श्रद्धा प्रकट करना होता है.
हिंदू धर्म में मनुष्य पर तीन ऋण बताए गए हैं, जिसमें पहला देव ऋण, दूसरा ऋषिऋण और तीसरा पितृऋण। पितृऋण से मुक्ति पाने के लिए ही श्राद्ध किया जाता हैं। श्राद्ध, पितरों के प्रति श्रद्धा व्यक्त करने का एक अनुष्ठान है।
माना जाता है कि जो लोग पितृपक्ष में पितरों का तर्पण नहीं करते है, उन्हें पितृ दोष लगता है. जिस किसी तिथि को व्यक्ति की मौत होती है, उसका श्राद्ध उसी दिन किया जाता है।
श्राद्ध पक्ष की सभी तिथियां:
18 सितंबर को प्रतिप्रदा श्राद्ध
19 सितंबर को प्रतिपदा श्राद्ध
20 सितंबर को तृतीया श्राद्ध
21 सितंबर को चतुर्थी श्राद्ध
22 सितंबर को पंचमी श्राद्ध
23 सितंबर को पष्ठी और सप्तमी श्राद्ध
24 सितंबर को अष्टमी श्राद्ध
25 सितंबर को नवमी श्राद्ध
26 सितंबर को दश्मी श्राद्ध
27 सितंबर को एकादशी श्राद्ध
28 सितंबर को को कोई श्राद्ध नहीं
29 सितंबर को द्वादशी श्राद्ध
30 सितंबर को त्रयोदशी श्राद्ध
01 अक्टूबर को चतुर्दशी श्राद्ध
02 अक्टूबर को सर्व पितृ अमावस्या श्राद्ध