बागेश्वर।
शिक्षा केवल पाठ्यक्रम तक सीमित न रहकर सोच, समझ, संवेदनशीलता और रचनात्मकता का माध्यम भी बने — इसी उद्देश्य को लेकर जिला शिक्षा एवं प्रशिक्षण संस्थान (डायट) बागेश्वर में आयोजित तीन दिवसीय ‘थिएटर इन एजुकेशन’ (TIE) कार्यशाला का समापन मंगलवार को हुआ। कार्यशाला में डायट के 55 डीएलएड प्रशिक्षुओं ने सक्रिय रूप से भाग लिया।
शिक्षक बनने की सोच से संवाद तक की यात्रा:
कार्यशाला के पहले दिन प्रशिक्षुओं ने “मैं शिक्षक क्यों बनना चाहता हूँ?” जैसे आत्ममंथन से शुरुआत की। सकारात्मक ऊर्जा, विश्वास और सहानुभूति जैसे मूल्यों की महत्ता को समझते हुए, ‘वाइब्स विद स्टूडेंट्स’ विषय पर चर्चा की गई। प्रशिक्षुओं के बीच आइस-ब्रेकिंग, टीम-बिल्डिंग और विश्वास निर्माण की गतिविधियाँ करवाई गईं।
दूसरे दिन थिएटर बना संवाद का माध्यम:
प्रशिक्षुओं ने कहानी कहने की कला, भावनात्मक अभिव्यक्ति, अभिनय, प्रॉप्स और साउंडस्केप जैसे रंगमंचीय उपकरणों से कक्षा को जीवंत बनाने के तरीके सीखे। थिएटर को शिक्षा में संवेदनशीलता और जागरूकता लाने का सशक्त माध्यम बताया गया।
तीसरे दिन गूंजे विचार, संवाद और ध्वनियाँ:
समूहों में कविता प्रस्तुति, विचार बनाम संवाद और ध्वनिपटल जैसी गतिविधियों के माध्यम से प्रशिक्षुओं ने अनुभव साझा किए। गिबरिश भाषा की रोचक गतिविधि ने प्रशिक्षुओं को अपनी आवाज और मन की स्वतंत्र अभिव्यक्ति दी। अंत में प्रशिक्षुओं ने आभार व्यक्त करते हुए कार्यशाला को अपने शिक्षण जीवन के लिए प्रेरणास्रोत बताया।
कार्यक्रम समन्वयक एवं सेवा पूर्व शिक्षक शिक्षा प्रभारी श्री रवि कुमार जोशी ने कहा, “थिएटर इन एजुकेशन न केवल बच्चों में रचनात्मकता और आत्मविश्वास विकसित करता है, बल्कि शिक्षक को एक संवेदनशील और प्रभावी शिक्षण शैली से जोड़ता है।”
समापन सत्र में डायट प्राचार्य डॉ. मनोज कुमार पांडे ने कहा कि शिक्षकों को विद्यार्थियों की भावनाओं और दृष्टिकोण को समझना चाहिए। उन्होंने कहा कि इस कार्यशाला ने प्रशिक्षुओं को शिक्षण के प्रति एक नई सोच और दृष्टिकोण प्रदान किया है।
इस अवसर पर डायट के डॉ. के.एस. रावत, डॉ. राजीव जोशी, डॉ. संदीप जोशी, डॉ. बी.डी. पांडे, डॉ. हरीश चंद्र जोशी, डॉ. दीपा जोशी, श्रीमती पूजा लोहुमी, श्रीमती रुचि पाठक, डॉ. सी.एम. जोशी, श्री कैलाश चंदोला, डॉ. दया सागर और मुख्य प्रशासनिक अधिकारी हेम चंद्र गुरु रानी सहित अन्य स्टाफ सदस्य उपस्थित रहे।
कार्यशाला में संदर्भदाता के रूप में सोल डायट्स फाउंडेशन, दिल्ली की सिमरन नागपाल और सरस्वती एस. पिरुमल शामिल रहीं। प्रशिक्षुओं ने कार्यशाला को “शिक्षा को जीवन से जोड़ने वाला अनुभव” बताया।
यह कार्यशाला शिक्षा को नई संवेदना, अभिव्यक्ति और प्रभावशीलता से जोड़ने की दिशा में एक सराहनीय पहल सिद्ध हुई।






