बीच बहस में : त्वरित प्रतिक्रिया
हरीश जोशी
स्वतन्त्र लेखक/वरिष्ठ पत्रकार
गरुड़, बागेश्वर
किसी गाँव में छेदी लाल नाम का एक किसान रहता था उम्र के अनुसार उसकी शादी हुई। पर शादी के बाद से ही उसकी पत्नी नाराज सी रहने लगी। छेदी ने कारण पूछा तो कहने लगी और सब तो ठीक है मोहल्ले की औरतें ताने मारती हैं कि छेदी लाल भी कोई नाम हुआ या तो तुम नाम बदलो या मैं चली। छेदी मरता क्या न करता गया शहर की ओर नाम बदलवाने एक मौलवी मिला उसे छेदी ने अपना दुखड़ा सुनाया मौलवी बोला नाम तो हम तुम्हारा बदल देंगे तुम्हें इस्लाम कबूल करना होगा। छेदी तैयार नया नाम मिला सुराख़ अली। ख़ुशी ख़ुशी घर गया बीबी को बताया वो भी खुश। दूसरे दिन बीबी फिर मुँह लटकाये। छेदी लाल से सुराख़ अली बने व्यक्ति ने पूछा अब क्या हुआ बीबी बोली मोहल्ले की औरतें कहती हैं क्या फर्क है छेदी लाल और सुराख़ अली में। फिर चेतावनी मिली नाम बदलो वरना मैं चली। छेदी फिर शहर की ओर गया अबके पादरी से पल्ला पड़ा उसे अपना दुःख बताया पादरी बोला कोई बात नहीं ईसाई बन जाओ तुरन्त नाम बदल देते हैं छेदी लाल उर्फ़ सुराख़ अली तैयार नया नाम मिला होल चंद........
छेदी लाल-सुराख़ अली-होल चंद की ये कहानी पता नहीं कितनी सच है या महज एक विनोद है। परन्तु नामों के परिवर्तन के इस दौर में साम्यता जरूर रखती है।
सत्ता की हनक जो ना करा दे वो ही कम है अब इण्डिया के भारत हो जाने की कवायद भी इसी आलोक में देखी जा सकती है क्या विपक्षी गठबंधन द्वारा ये नाम प्रयोग किये जाने का समाधान इस तरह से नाम परिवर्तन के अलावा और कुछ नहीं हो सकता था। पहली बात तो ये कि इस नाम के विरुद्ध अपने अच्छे कामों की छाप छोड़ी जाती परन्तु नाम परिवर्तन की हड़बड़ाहट बताती है कि शायद ऐसा कुछ दिखाने को है नहीं शायद।
माना कि संवैधानिक और क़ानूनी तौर तरीकों से ये कवायद पूरी हो ही जाये तो सवाल उठता है कि क्या क्या बदला जायेगा। देश की सर्वोच्च सेवाओं आई ए एस, आई एफ एस, आई पी एस……आदि आदि इत्यादि। सर्वोच्च अध्ययन संस्थानों कई यूनिवर्सिटीज, सर्वोच्च चिकित्सा संस्थान……….आदि आदि इत्यादि में ये नाम आधिकारिक रूप से सम्मिलित है। देश की कई शपथ, डिग्री और प्रमाण पत्रों में इस नाम का अनिवार्य उल्लेख है।
इस सबको अगर छोड़ भी दें तो हजारों अरब की प्रचलित मुद्रा और सिक्कों में इण्डिया नाम का उल्लेख है तो क्या ये सब भी बदलने जा रहा है ध्यान रहे इस देश ने कुछ समय पहले ही नोटबन्दी की मार ही नहीं झेली है वरन इसके दर्द को भी सहा है इससे क्या हासिल हुआ ये तो नीति नियन्ता ही जानें परन्तु इस सबका दंश जनता को ही झेलना पड़ता है और पड़ रहा है।
नामों के परिवर्तन की इस बेवजह कवायद के बीच जनता का विश्वास अर्जित करने को और भी कई रास्ते हैं तो नाम परिवर्तन का ये शॉर्ट कट क्यों।
सवालों की फेरहिस्त बहुत लंबी हो सकती है पर नक्कार खाने में तूती की आवाज के मायने भी तो देखने होंगे।
फिलवक्त आज कृष्ण जन्माष्टमी है और भगवान कृष्ण ने कहा था नाम में क्या रखा है राम और कृष्ण के नाम से वैतरणी पार कर यहाँ तक पहुँचे इन कर्णधारों को ये भी पता हो कि सनातन की बात करने वाले इन राजनैतिक आकाओं के आराध्य देवों के देव महादेव शिव के नाम से भी एक विपक्षी राजनैतिक दल है तो क्या भगवान शिव का भी नाम बदलने जा रहा है।