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हजारों होल्यारों ने बाबा बागनाथ धाम में होली का किया सामूहिक गायन

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बागेश्वर कुमाऊं की काशी के नाम से विश्व विख्यात शिव की नगरी बागेश्वर मुख्यालय में होलियों की टोलिया भी होली की मस्ती में डूब गयी। होलियों की खुमारी अब शहर से लेकर गाउँ तक अपने पूरे शबाब पर हैं। ग्रामीण क्षेत्रों से लेकर शहर तक पुरुष, महिला, बच्चे, बुजुर्ग सभी होली के रंग में सराबोर हैं। जब हर तरफ रंग हो और बाबा बागनाथ जी होली न खेलें ऐसा कैसे हो सकता है।

बागेश्वर में रंग पड़ने एकादशी से छरड़ी तक होली मनाई जाती है। चतुर्दशी के दिन जनपद के दर्जनों गांवों से बाबा बागनाथ के मंदिर में होली गायन की परंपरा वर्षों से चली आ रही है। इलाके के गांवों से होल्यार अपने अपने दलनायक अथवा डांगर के नेतृत्व मे आते हैं। सभी गांवों के होल्यारों का मिलन चौक बाजार में होता है जहां से सभी होल्यार एकरुप होकर बागनाथ मंदिर में एकत्र हो शिवजी को अबीर, गुलाल, तथा रंगों से पूजा अर्चना कर शिवजी के होली गायन के जरिये होली मनाने का निमंत्रण देते हैं। मंदिर परिसर में होली गायन के बाद शिवजी को अगली होली में फिर आने की प्रार्थना के साथ विदा किया जाता है। एक ओर जहां यह परंपरा काफी पुरानी और समृद्ध है वहीं अब युवा वर्ग का परंपराओं की ओर घटते रुझान का असर होलियों पर भी दिखाई देने लगा है। कुछ वर्षों पहले तक जहां बाजारों में चतुर्दशी के दिन होल्यारों का मेला लग जाता था मगर अब लोग रस्म अदायगी भर के लिए आ रहे है। चतुर्दशी के दिन दूरदराज के ग्रामीणों में मिठाइयों और गुझियों की काफी मांग रहती है।


कई सालों पहले चतुर्दशी को बागेश्वर जनपद के सभी क्षेत्रों पिण्डर घाटी, कत्यूर घाटी, खरई पट्टी और दुग पटृटी के होल्यार बाबा बागनाथ जी के साथ होली मिलन को आते हैं। चौक बाजार में एकत्रित हो होल्यार भगवान शिव के साथ होली खेलने बागनाथ मंदिर में सामूहिक रुप से जाते हैं। जानकारों का कहना है कि मंदिर बनने के साथ ही यह परंपरा चली आ रही है। पहले जहां 200 गांवों के होल्यार एकत्रित होते थे वहीं अब कई गांवों की होलियां इसमें भाग नहीं ले रही हैं। इसका प्रमुख कारण युवाओं का पारंपरिक होलियों में प्रतिभाग न करना। वहीँ बागनाथ मंदिर के पंडित का कहना है की शिवचतुर्दशी होली के दिन बड़ी मान्यता है इस दिन बाबा बागनाथ मंदिर में अबीर,गुलाल अर्पित करने के लिए दर्जनो की संख्या में ग्रामीण और स्थानीय होल्यार आते है और होली गायन करते है। शिवचतुर्दशी होली का बड़ा महत्व माना जाता है शिव मंदिरो पर अबीर,गुलाल चढ़ा कर एक दूसरे को आशीर्वाद देते है। कुमाउँनी होली पर्व हमारी पारंपरिक सांस्कृतिक धरोहरों में से है। युवाओं को जोड़ने के लिए इस परंपरा को बचाने के लिए हमारी बुजुर्ग पीढ़ी को आगे आकर होली गायन के प्रति युवाओं को जागरुक करना होगा तभी इस परंपरा को पुनः पहले की स्थिति में लाया जा सकेगा। इस मौके पर जिला पंचायत उपाध्यक्ष नवीन परिहार,गोबिंद कठायत, डॉ राजेंद्र परिहार, दीपक परिहार,दरबान बिष्ट, प्रकाश ऐठानी,राजेंद्र टंगड़िया,चंदन परिहार, नवीन बलसुनी, गोबिंद मटियानी, आनंद जोशी आदि होल्यार मौजूद रहे।

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