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सात गाँवो के होल्यारों की अनूठी परंपरा,बाबा बगनाथ मंदिर से करते है होलियो कि शुरुआत

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अल्मोड़ा जिले के ताकुला क्षेत्र के सात गांवों के 80 होल्यारों का समूह आज महाशिवरात्रि के दिन बागेश्वर में बाबा बागनाथ के धाम पहुंची। होल्यारों ने बागनाथ मंदिर में शिव की पूजा कर भक्तिमय होली के गीतों का गायन किया।

ताकुला क्षेत्र के सात गांवों को सतराली के नाम से जाना जाता है। इन गांवों में कोतवालगांव, कांडे, लोहना, खाड़ी, झाड़कोट, पनेरगांव और थापला हैं। बुजुर्ग बताते हैं कि 70 साल पहले इन गांवों के लोग बैठकी होली के गीतों के गायन की शुरूआत बाबा बागनाथ के मंदिर में गाकर किया करते थे। पलायन की वजह से कई सालों तक यह सिलसिला छूट गया था। इस पर नई पीढ़ी के युवाओं ने स्वरोजगार को अपनाकर अपनी इस प्रथा को फिर से जीवंत कर दिया है।

कहा जाता है कि सतराली के पूर्वजों ने मंदिर में धूणी का निर्माण कराया था। जिसके चलते वह पहली होली महाशिवरात्रि के दिन बाबा बागनाथ के दर पर गाया करते थे। इसके बाद एकादशी को इन गांवों में सात चीर बांधी जाती थी। चतुदर्शी को गणनाथ मंदिर में होली गायन किया जाता था। युवा पीढ़ी का गांवों से पलायन होने से बागनाथ मंदिर आने की परंपरा टूट गई। पिछले पांच सालों से अब इन सात गांवों की युवा पीढ़ी अपने पूर्वजों की बनाई परंपरा को फिर से जीवंत करने में जुट गई है। आज महाशिवरात्रि पर सभी गांवों के होल्यार अपने साथ सभी सातों गांवों की होली का ढोलक लेकर बागनाथ मंदिर पहुंचे। बागनाथ मंदिर में सात गांवों से आए सात ढोलकों की थाप पर होल्यारों ने होली गायन शुरु किया तो पूरा मंदिर परिसर होली के रंग में रंग गया। शिवरात्रि पर मंदिर में उमड़े भक्तों के साथ ही नगर के होल्यार और मंदिर प्रबंध समिति से जुड़े लोग भी होली गायन में शामिल हो गए।

सतराली के होली के बारे में बागनाथ मंदिर समिति के अध्यक्ष नंदन रावल बताते हैं कि शिवरात्रि से खड़ी होली गायन शुरू हो जाता है, जबकि एकादशी के बाद रंग की होली खेली जाती है। सतराली के होली के साथ ही पूरे कुमाऊं की होली प्रसिद्ध है।

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