विशेष सत्र न्यायाधीश आरके खुल्बे की कोर्ट ने पुलिस की कार्यशैली पर सख्त टिप्पणी करते हुए चरस के साथ पकड़े गए आरोपी को साक्ष्य के अभाव में दोषमुक्त किया। कोर्ट ने पुलिस की कार्यशैली पर सवाल उठाते हुए गिरफ्तारी के स्थान को संदेहास्पद बताया निर्णय की प्रति मुख्य सचिव और डीजीपी को भेजने का आदेश दिया है।
अक्टूबर 2020 को कपकोट थाने में तैनात एसआई सुष्मिता राणा की टीम ने रिठाबगड़ पुल के पास 4:30 बजे गोगीना निवासी कुंवर सिंह दानू को हिरासत में लिया था। उसके पास से 5.213 किलोग्राम चरस बरामद होने पर एनडीपीएस के तहत केस दर्ज किया था। कोर्ट ने आरोपी को दोषमुक्त कर बरी करने का फैसला सुनाया।
वही पैरवी कर रहे अधिवक्ता नरेंद्र सिंह कोरंगा और हेमचंद सिंह राणा ने कोर्ट को बताया कि एसओजी की टीम ने कुंवर सिंह दानू को उसके गांव से पकड़ा था जबकि उसकी गिरफ्तारी रीठा बगड़ में दिखाई गई चरस बरामद की का समय 7:10 बजे दिखाया गया।
कोर्ट ने कहा कि पुलिस ने अपनी कार्यशैली में बदलाव नहीं किया और शीर्ष अधिकारियों को इस मामले में कोई ठोस कदम नहीं उठाए तो प्रदेश में अराजकता का साम्राज्य स्थापित होगा। जो कल्याणकारी राज्य की अवधारणा के विपरीत है। जिस तरह से जिला स्तर की पुलिस कार्य कर रही है आम जनता के अधिकारों के साथ खिलवाड़ हो रहा है। जब एसओजी टीम ने आरोपी को गिरफ्तार कर उससे चरस बरामद की थी तो बरामदगी रीठाबगड क्यों दिखाई गई। यह पुलिस की कार्यप्रणाली पर शक पैदा करता है जो निश्चित तौर पर पुलिस प्रशासन की लापरवाही और तथ्यों को छिपाए जाने के कृत्य को दृष्टिगोचर करता है।
कोर्ट ने यह भी कहा कि यह विचारणीय प्रश्न है कि उत्तराखंड राज्य की आम जनता किस प्रकार सुरक्षित है जब किसी व्यक्ति को जबरदस्ती जीत में बैठाकर गिरफ्तार किया जाता है उससे अवैध मादक पदार्थों की बरामदगी दिखाई जाती है। इससे स्वाभाविक पुलिस की कार्यप्रणाली पर प्रश्नचिन्ह उठता है।
कोर्ट के अनुसार यह दूषित कार्यशैली की पराकाष्ठा है कि जिस एसओजी की टीम की ओर से आरोपी को जबरदस्ती जीप में बैठाकर ले जाना और उससे मारपीट करना बताया गया उसी टीम के एक सदस्य को पुलिस महानिरीक्षक कुमाऊं परिक्षेत्र की ओर से बेस्ट एंप्लॉय ऑफ द मंथ के पुरस्कार से नवाजा जाता है।


























