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सातु आठु मेले का बोहाला में हुआ भव्य आयोजन, सांस्कृतिक कार्यक्रमों की रही धूम

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बागेश्वर में यू तो कोई न कोई त्यौहार मनाने की परम्परा रही है। इन्हीं त्यौहारों में से एक सातु-आठूं का त्यौहार भी है। जो कुमाऊं मंडल के अल्मोड़ा, पिथौरागढ़ और बागेश्वर जिलों में हर साल बड़ी धूमधाम के साथ मनाया जाता है। इसी के तहत जिले के बोहाला में तीन दिनी मेले का भव्य आयोजन किया जाता है। जिसका आज शुभारंभ हो गया है।विधायक प्रतिनिधि गौरव दास,मेला समिति के अध्यक्ष नरेंद्र रावत और पूर्व जिला पंचायत अध्यक्ष हरीश ऐठानी ने किया। जिसने विभिन्न सांस्कृतिक कार्यक्रमो का आयोजन किया जा रहा है।

बता दे कि सातु आठु का पर्व बागेश्वर में काफी महत्वपूर्ण पर्व माना जाता है। लोक कथाओं पर आधारित इस त्यौहार को भादो महीने में मनाया जाता है। पंचमी के दिन महिलाएं व्रत रखकर सात अनाज भिगोते हैं जिनमें मटर,चना,उरद,गेहूं,सरसों,तिल,जौ प्रमुख हैं। पंचमी के दिन इन सात अनाज को साफ करके धोकर तांबे या पीतल के बर्तन में रखने की परम्परा रही है। फिर इन्हें घर के मंदिर के पास साफ जगह पर रख दिया जाता है। इस त्यौहार को गांव की महिलाएं और अन्य लोग सामूहि रूप से मनाते हैं। सप्तमी के दिन महिलाएं व्रत धारण करती हैं और हरे-भरे खेत में जाकर तिल और पाती की टहनियों से गौरा और महेश की प्रतिमाएं बनाती हैं। इन्हें सुन्दर वस्त्र पहनाए जाते हैं और श्रृंगार भी किया जाता है। सप्तमी के शाम को गौरा-महेश की पूजा-अर्चना की जाती है और वह अनाज जिन्हें बिरुड़ कहते हैं उन्हें गौरा-महेश को चढ़ाया जाता है। आठूं के दिन भिगोए हुए बिरुड को पकाया जाता है और इसे प्रसाद के तौर पर सबको बांटा जाता है। सातों और आठूं के दिन महिलाएं व्रत धारण करती हैं, जिसे डोर-दुबड़ का व्रत भी कहा जाता है। इस अवसर पर महिलाओं द्वारा लोकगीत, झोड़े, चांचरी, भजन कीर्तन भी किए जाते हैं और गौरा-महेश की प्रतिमाओं जिन्हें गंवारे कहते हैं इन्हें महिलाओं द्वारा बारी बारी से नचाया जाता है।

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इस मौके पर समिति के अध्यक्ष ये मेला हमारा पौराणिक मेला है जो हमारे सदियों से चलाया हुआ है। आज इसे आगे बढ़ाने का काम किया जा रहा है। हम अपनी पारंपारिक संस्कृति और धरोहर को बचाए रखने का प्रयास कर रहे है।वही विधायक प्रतिनिधि गौरव दास ने बताया कि यह मेला काफी पौराणिक मेला है इस मेले में हमारी संस्कृति देखने को मिलती है। इसको बचाने का काम किया जा रहा है। हम भी लगातार लोकल मेलो और महोत्सवों को बचाने का काम कर रहे है। और लगातार इस तरह के मेलो को बढ़ा करने का प्रयास किया जा रहा है। पूर्व जिला पंचायत अध्यक्ष हरीश ऐठानी ने बताया कि यह मेले हमारी संस्कृति और हमारी परंपरा को प्रदर्शित करती है। इस मेले के द्वारा हम अपनी जड़ों से जुड़े रहते है। यह मेला तो शुरुआत है अब जिले में लगातार मेले होंगे जो महीने के आखिरी तक चलते रहेंगे। इस मौके पर हेमा रौतेला,मनीष कुमार,प्रमोद कुमार,आशीष कुमार,गोबिंद सिंह, दर्शन सिंह, महिपाल सिंह,मोहन सिंह, पुरन असवाल,मोहन कोश्यारी, सन्तोष, लाछिमा देवी, मुन्नी देवी आदि मौजूद रहे।

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