रिपोर्ट: जगदीश उपाध्याय (जैक)
बागेश्वर।
देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मानों में शामिल पद्मश्री पुरस्कार की घोषणा में इस बार उत्तराखंड का नाम भी गौरवान्वित हुआ है। राधा बहन भट्ट, जो दशकों से गांधीवादी विचारों, पर्यावरण संरक्षण, महिला सशक्तिकरण और शिक्षा के क्षेत्र में योगदान देती रही हैं, को भारत सरकार द्वारा पद्मश्री सम्मान देने की घोषणा की गई है।
राधा बहन को पहाड़ में लोग “पहाड़ की गांधी” कहकर पुकारते हैं। वह न केवल सामाजिक कार्यकर्ता हैं, बल्कि एक आंदोलनकारी, शिक्षिका, पर्यावरण योद्धा और विचारशील लेखिका भी हैं। उनका जीवन हिमालयी समाज और प्रकृति के बीच संतुलन बनाने का आदर्श उदाहरण है।
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✦ जीवन की यात्रा: सेवा और साधना का संगम
जन्म: 17 अक्टूबर 1933, धुरका गांव, अल्मोड़ा
शिक्षा: इंटरमीडिएट तक पढ़ाई
प्रेरणा स्रोत: सरला बहन
शुरुआत: 1951 में लक्ष्मी आश्रम, कौसानी में शिक्षिका बनीं
भूदान आंदोलन (1957) में सक्रिय भागीदारी
विनोबा भावे के साथ उत्तर प्रदेश और असम में दो ऐतिहासिक पदयात्राएं
1961–65: ग्राम स्वराज, शराब विरोध, महिला अधिकार और वन संरक्षण के लिए कार्य
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✦ पर्यावरण और शिक्षा के लिए समर्पण
उत्तराखंड के वंचित क्षेत्रों में 25 बाल मंदिरों की स्थापना
15,000 से अधिक बच्चों को शिक्षा से जोड़ा
अल्मोड़ा और पिथौरागढ़ में 1.6 लाख से अधिक पौधे रोपे
1975 में 75 दिन की पदयात्रा के ज़रिए वन और महिला सुरक्षा को लेकर जनजागरण
2006–10 के दौरान हिमालय और नदियों का सर्वेक्षण एवं हाइड्रो प्रोजेक्ट्स का विरोध
“हिमालय की बेटियां” पुस्तक लेखन — जर्मन और डेनिश में अनूदित
वर्तमान में नौला (जल स्रोत) पुनर्जीवन अभियान में सक्रिय
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✦ सम्मान और मान्यताएं
राधा बहन को अब तक कई राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर के पुरस्कार मिल चुके हैं, जिनमें शामिल हैं:
जमनालाल बजाज पुरस्कार
इंदिरा प्रियदर्शिनी पर्यावरण पुरस्कार
गोदावरी गौरव पुरस्कार
मुनि सतबल पुरस्कार
कुमाऊं गौरव सम्मान
नोबेल शांति पुरस्कार के लिए नामांकन
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✦ विचार और प्रभाव
राधा बहन का जीवन बताता है कि साधनों की सीमाएं हों तो भी संकल्प असीम हो सकते हैं। उन्होंने कभी विवाह नहीं किया, और पूरी ज़िंदगी को ग्राम स्वराज, नारी चेतना और प्रकृति की रक्षा को समर्पित कर दिया। उन्होंने कहा—
> “यह पुरस्कार केवल मेरा नहीं है, यह उत्तराखंड की पर्वतीय बेटियों, जंगलों और जलधाराओं के सम्मान का प्रतीक है।”
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राधा बहन की प्रेरणा सरला बहन थी, जो खुद अंग्रेजी मूल की महिला थीं और गांधी जी से प्रभावित होकर भारत आकर लक्ष्मी आश्रम की स्थापना की थी।
राधा बहन ने अपने जीवन का हर संघर्ष सत्याग्रह और अहिंसा के साथ लड़ा।
उनके प्रयासों से कौसानी क्षेत्र में कई सूख चुके नौले (जलधाराएं) फिर से बह निकले हैं।
राधा बहन भट्ट को पद्मश्री पुरस्कार मिलना सिर्फ एक व्यक्ति का नहीं, बल्कि पूरे उत्तराखंड और गांधीवादी विचारधारा का राष्ट्रीय सम्मान है। उनका जीवन आने वाली पीढ़ियों के लिए सामाजिक संघर्ष, पर्यावरण प्रेम और आत्मनिष्ठा की प्रेरणा बना रहेगा।






