रिपोर्ट – आशीष पाण्डेय ( चंपावत )
चंपावत के देवीधुरा में माँ बाराही धाम में खेले जाने वाली पत्थर मार बगवाल के आज मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी व लाखो श्रद्धालु साक्षी बने। पूर्व में पत्थर से खेले जाने वाली यह बगवाल 4 ख़ामो के बीच होती थी जिसे 2013 में उच्च न्यायालय के आदेशों के फलों और फूलों से खेला जाने लगा। आज रक्षा बंधन के दिन अनादिकाल से खेली जा रही बगवाल को स्वयं मुख्यमंत्री ने देखा। 4 ख़ामो 7 तोको के बीच खेले जाने वाली इस बगवाल की मान्यता एक नर बली के बदले खेलना जाने वाली बगवाल माना जाता है।
7.30 मिनट तक चली इस बगवाल को शंखनाद से शुरू किया जाता है, माना जाता है कि एक नर जितना खून जब माँ के इस प्रांगण में चढ़ता है तो बगवाल रुक जाती है। इस बगवाल के दौरान इसमे हिस्सा लेने वाले रणबाँकुरे अपने को लगी चोट माँ बाराही का आशीर्वाद मानते है। आज खेली गई इस बगवाल में तकरीबन 157 रणबाकुरों समेत दर्शक घायल हुए। 3 को हायर सेन्टर में हड्डी की चोट के चलते रेफर किया गया। जबकि अन्य को मामूली चोट आई। मुख्यमंत्री ने इस बगवाल का हिस्सा बनने पर खुद को सौभाग्यशाली बताया और साथ ही जल्द इन धार्मिक स्थलों को सरकार की मदद से इनके विस्तारण की बात कही।
देवीधुरा का ऐतिहासिक बग्वाल मेला असाड़ी कौतिक के नाम से भी प्रसिद्ध है। हर साल रक्षा बंधन के मौके पर बग्वाल खेली जाती है। बग्वाल चार खामों और सात थोक के लोगों के मध्य खेली जाती है। माना जाता है कि देवीधूरा में बग्वाल का यह खेल पौराणिक काल से खेला जा रहा है।
कुछ लोग इसे कत्यूर शासन से चला आ रहा पारंपरिक त्योहार मानते हैं, जबकि कुछ अन्य इसे काली कुमाऊं से जोड़ कर देखते हैं। प्रचलित मान्यताओं के अनुसार पौराणिक काल में चार खामों के लोगों द्बारा अपनी आराध्या बाराही देवी को मनाने के लिए नर बलि देने की प्रथा थी। मां बाराही को प्रसन्न करने के लिए चारों खामों के लोगों में से हर साल एक नर बलि दी जाती थी।
बताया जाता है कि एक साल चमियाल खाम की एक वृद्धा परिवार की नर बलि की बारी थी। परिवार में वृद्धा और उसका पौत्र ही जीवित थे। महिला ने अपने पौत्र की जान बचाने के लिए मां बाराही की स्तुति की। मां बाराही ने वृद्धा को दर्शन दिए और कहा जाता है कि देवी ने वृद्धा को मंदिर परिसर में चार खामों के बीच बग्वाल खेलने के निर्देश दिए। तब से बग्वाल की प्रथा शुरू हुई।
देवी की आराधना के साथ शुरू हो जाता है अछ्वुत खेल बग्वाल। बाराही मंदिर में एक ओर मा की आराधना होती है दूसरी ओर रणबाकुरे बग्वाल खेलते हैं। दोनों ओर के रणबाकुरे पूरी ताकत व असीमित संख्या में पत्थर तब तक चलाते हैं जब तक एक आदमी के बराबर खून न गिर जाए। बताया जाता है कि पुजारी बग्वाल को रोकने का आदेश जब तक जारी नहीं करते तब तक खेल जारी रहता है।