रिपोर्ट – राजकुमार सिंह परिहार
भारत में नदियों का अपना चरित्र होता है। वो मदमस्त बहतीं हैं और अपने रास्ते खुद तय करतीं हैं, किसी ट्रेफिक नियंत्रक के इशारे का इंतजार नहीं करतीं। नियम यह है कि सरकारें नदियों की स्वतंत्रता कायम रखें और उन्हें वैसे ही बहने दें जैसा कि वो बहना चाहतीं हैं परंतु यहां पढ़िए कैसे किसी अंडरटेबल सेटिंग का पॉलिटिकल प्रेशर के बाद नदियों से छेड़छाड़ की जाती है।
मामला कपकोट सरमूल से अवतरित होने वाली बहुचर्चित सरयू नदी का है। इसके किनारों पर कब्जा कर बिल्डरों ने पहले ही कंक्रीट के बगीचे लगा डाले। जिससे करोड़ों की कमाई कर ली गई। आज प्रशासन द्वारा ही मेले में नौकायन का हवाला देते हुए नदी के बहाव के साथ छेड़छाड़ की जा रही है और हमारे सामाजिक जन मौन बैठे शायद किसी बड़ी आपदा के इंतज़ार में हैं। मामला नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल तक पहुँचना चाहिए।
सिंचाई विभाग कपकोट द्वारा संचालित इस कार्य में नदी में दो मशीनों से अस्थाई झील का निर्माण करने की बात स्वीकारते हुए सम्बंधित विभागीय अधिकारी जगत सिंह बिष्ट कहते हैं कि “मेले की बैठक में यह बात प्रस्तावित हुई है, आपसी तालमेल से यह कार्य संचालित किया जा रहा है। कोई सामग्री नदी से बाहर हम लेकर नही जा रहे हैं। जिसमें नदी का पानी रोका नही जा रहा है न ही रास्ता परिवर्तित किया जा रहा बस एक मीटर का पाउंड बनाया जा रहा है। कार्यवृत्ति दिखाने की बात कहे जाने पर उन्होंने अभी साईट पर होने की बात करते हुए बाद में देना स्वीकारा है। अब यहां गौर करने वाली बात यह है कि उनके पास कोई लिखित आदेश इस सम्बंध में नही है, न ही कोई विज्ञप्ति जारी की गयी। जिसका विडियो सोशल मीडिया पर तेज़ी से वायरल हो रहा है। तो इसे आप क्या कहेंगे?”
नदी को डायवर्ट करने के इस मामले को सीधे-सीधे जलीय जीवों की सामूहिक हत्या का मामला बनता हैं। जिसमें बेकसूर जलीय जीवों की इस तरह से हत्या करना अपराध है और ऐसा करने वालों के खिलाफ कार्रवाई की जानी चाहिए।
हमारी आस्था का प्रतीक सरयू नदी की अपनी एक खासियत है कि वह अपने आसपास के किनारों पर ऐसी वनस्पति विकसित करने में मददगार होती थी जो मिट्टी के कटाव को रोकती थी। हमने नदी की खूबी को जाने-अनजाने में ही समाप्त कर दिया। नदी में जीवन होने की बात कही जाती है तो वास्तविकता में जीवन उसके साथ चलता है। नदी में कई महत्वपूर्ण पेड़-पौधों के बीज रहते हैं और यह कब किनारे पर पहुंचकर पौधे और पेड़ का आकार लेते हैं, किसी को मालूम नहीं पड़ता। इसी तरह से हम देखते नदी के किनारे पर बरसों से यह जंगल विकसित होते आए।