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हरीश ऐठानी की सदस्यता बहाल, सरकार पर लगाया लोकतांत्रिक शक्तियों के हनन का आरोप।

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रिपोर्ट – राजकुमार सिंह परिहार

पूर्व जिला पंचायत अध्यक्ष ने वर्तमान जिला पंचायत सदस्य हरीश ऐठानी की सदस्यता बहाल कर दी है। यह फैसला चुनाव नामांकन से ठीक पहले आया। ऐठानी ने अपनी सदस्यता की बहाली को लेकर 18 अक्टूबर को उच्च न्यायालय (SC) मे याचिका लगाई थी।

कुमाउं मंडल विकास निगम विश्राम गृह में बुधवार को पत्रकारों से वार्ता करते हुए पूर्व जिला पंचायत अध्यक्ष व वर्तमान जिला पंचायत सदस्य हरीश ऐठानी ने बताया कि उत्तराखण्ड उच्च न्यायालय ने मंगलवार को उनकी सदस्यता समाप्त करने के शासन के फैसले को नियमानुसार न मानते हुए इस आदेश को रद्द कर दिया है। हरीश ऐठानी पर वर्ष 2014 से 2019 तक जिलापंचायत अध्यक्ष रहते वित्तीय अनियमितताएं करने के आरोप थे। उसके बाद उन्होंने शामा क्षेत्र से जिलापंचायत सदस्य का चुनाव लड़ा और जीता भी। इन शिकायतों के आधार पर शासन ने मई 2023 में उनकी जिला पंचायत सदस्यता रद्द करने की घोषणा कर दी। हरीश ऐठानी ने इस आदेश को उच्च न्यायालय में चुनौती दी थी। इस मामले में न्यायालय ने पिछले हफ्ते सुनवाई पूरी कर, निर्णय सुरक्षित रख लिया था। मंगलवार को न्यायमूर्ति रविन्द्र मैठाणी की एकलपीठ ने हरीश ऐठानी की सदस्यता समाप्त करने सम्बन्धी आदेश को नियम विरुद्ध पाते हुए खारिज कर दिया।

उन्होंने कहा है कि सच्चाई परेशान जरूरी हो सकती है, किंतु उसकी हार नहीं हो सकती। यह बात उन्होंने न्यायालय से उनकी सदस्यता बहाल होने के बाद प्रेसवार्ता में कही। उन्होंने कहा कि उनकी सदस्यता को भाजपा सरकार ने राजनैतिक द्धेषभावना से रद्द किया था, जिसे लेकर उन्होंने न्यायालय का दरवाजा खटखटाया और न्यायालय ने उनके पक्ष में निर्णय देकर दूध का दूध और पानी का पानी कर दिया। न्यायालय का यह निर्णय उन लोगों के लिए भी सबक का काम करेगी, जो लोकतंत्र पर भरोसा नहीं रखते हैं। उन्होंने कहा कि वह वर्ष 2014 में जनता द्वारा जिला पंचायत सदस्य के रूप में चुने गए। उसके बाद वह जिला पंचायत अध्यक्ष बने। तब उन्हें तथा उनके निकटतम प्रतिद्वंद्वी भाजपा समर्थित सदस्य को दस-दस मत मिले थे। बाद में लॉटरी सिस्टम में से वह अध्यक्ष बने, किंतु हारे हुए सदस्य से इसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट तक लड़ाई लड़ी। वहां से उनके पक्ष में निर्णय आया और उन्होंने अपना पांच साल का कार्यकाल पूरा किया। बाद में सरकार ने उनके खिलाफ वित्तीय अनियमितता का आरोप लगाया। जिसकी जांच कमीश्नर से लेकर सरकार ने भी कराई, जांच में उन पर लगे आरोप निराधार साबित हुए। यह जांच 2018 में पूरी हुई।

उन्होंने बताया कि वर्ष 2019 के चुनाव में वह शामा और उनकी पत्नी वंदना बड़ेत सीट से जिला पंचायत सदस्य चुनी गई। इससे भाजपा और उनकी सरकार तिलमिला गई। राजनैतिक द्धेषभावना ने उनकी सदस्यता रद करने का षडयंत्र रचा गया। इसके खिलाफ उन्होंने हाईकोर्ट की शरण ली, जहां से उन्हें न्याय मिला है। उन्होंने कहा कि भाजपा सरकार का काम सिर्फ जनता द्वारा चुने प्रतिनिधियों की सदस्यता खत्म करने का रह गया है, लेकिन भारत का लोकतंत्र इतना कमजोर नहीं, जो इनके मंसूबों को पूरा होने देगा। अब न्यायालय ने दूध का दूध पानी और पानी का पानी कर दिया है। इस मौके पर कांग्रेस के पूर्व जिलाध्यक्ष लोकमणि पाठक, कपकोट नगर पंचायत अध्यक्ष गोविंद बिष्ट जिला पंचायत सदस्य सुरेश खेतवाल, पूर्व प्रमुख राजेन्द्र टंगड़िया, ब्लॉक अध्यक्ष दीपक गड़िया, भूपेश ऐठानी, अर्जुन भट्ट, भगवत रावल, राजेन्द्र राठौर, गोपाल राम, ललित गोश्वमी, रमेश भण्डारी, चामू देवली, गोकुल परिहार, कवि जोशी आदि मौजूद रहे।

वहीं कांग्रेस जिलाध्यक्ष भगवत डसीला ने कहा कि इसमें एक बार फिर लोकतन्त्र की जीत हुई है। जिस तरीक़े से जनता पार्टी के लोग सरकार की आड़ में प्रदेश में कई जगहों पर सम्मानित अध्यक्ष पदों पर बैठे लोगों को हटाने का काम किया है जिसका माननीय न्यायालय ने इनको सभी जगहों पर करारा जवाब दिया है। आज हरीश ऐठानी जी के मामले में भी न्यायालय का भरोसा अधिक मज़बूत हुआ है, जिसकी वजह से दूध का दूध व पानी का पानी आपके सामने है। विपक्ष के नेताओं को ख़त्म करने की भाजपा लगातार नाकाम कोशिश कर रही है, जिसका जवाब इन्हें समय समय पर माननीय न्यायालय द्वारा दिया गया है।

वहीं पूर्व विधायक कपकोट ललित फर्स्वाण कहते हैं कि कांग्रेस पार्टी न्यायप्रिय पार्टी है, आज हमको न्याय मिला है हम न्याय पर विश्वास करते हैं। छोटे भाई हरीश ऐठानी ने बागेश्वर जनपद से लोकतन्त्र को जीवित करने में एक मिसाल क़ायम करने का काम किया है। इस समय सत्ता का दुरुपयोग प्रदेश की धामी सरकार इस तरह के काम कर लोकतन्त्र की हत्या कर रही है जो बेहद निंदनीय है।

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