कपकोट (बागेश्वर)।
कांग्रेस नेता एवं पूर्व जिला पंचायत अध्यक्ष हरीश ऐठानी ने सरकार पर तीखा हमला करते हुए कहा कि कपकोट क्षेत्र समेत जिले में आई पिछली भीषण आपदाओं से भी सरकार ने कोई सबक नहीं लिया। उन्होंने कहा कि जनप्रतिनिधि केवल आपदा प्रभावित क्षेत्रों में जाकर फोटो खिंचवाने और सोशल मीडिया में दिखावा करने में लगे हैं, जबकि जमीनी स्तर पर कोई राहत कार्य दिखाई नहीं दे रहा।
रविवार को अपने आवास में आयोजित पत्रकार वार्ता में ऐठानी ने कहा कि कपकोट क्षेत्र पहले भी कई बार भयंकर आपदाओं की चपेट में आ चुका है। उन्होंने बताया,
1982 में कर्मी,
1984 में कनगड़ घाटी,
2010 में सुमगढ़,
और 2013 में पिंडर घाटी में भीषण आपदाएं आईं, जिनमें जानमाल का भारी नुकसान हुआ।
इसके बावजूद न तो सरकार ने स्थायी समाधान की दिशा में कोई कदम उठाए और न ही आपदा प्रबंधन के मानकों को मजबूत किया।
उन्होंने कहा कि 28 अगस्त 2024 को जब आपदा सचिव जिले में आए थे, तब उन्हें इस बाबत ज्ञापन सौंपा गया था, जिसमें विद्यालय भवनों का भू-गर्भीय सर्वे कराने की मांग की गई थी, ताकि सुमगढ़ जैसी घटनाओं की पुनरावृत्ति न हो। लेकिन सरकार ने इस पर आंखें मूंद लीं।
ऐठानी ने बताया कि:
कई गांव जैसे किलकपरा, खारबगड़, चनौली और कुंवारी आज भी विस्थापन की बाट जोह रहे हैं।
गधेरों के पास बने विद्यालयों में अब भी कक्षाएं संचालित हो रही हैं, जिससे बच्चों की सुरक्षा खतरे में है।
पूरे जिले में करीब एक हजार किलोमीटर सड़कें हैं, लेकिन आपदा से निपटने को महज 50 जेसीबी मशीनें ही तैनात की गई हैं।
बालीघाट की जेसीबी को पिंडारी ग्लेशियर तक भेजा जा रहा है, जिससे अन्य क्षेत्रों में राहत कार्य प्रभावित हो रहे हैं।
उन्होंने आरोप लगाया कि बीआरओ के कलमठ बंद होने से गोलना के गुनाड़ी तोक में भारी संपत्ति बह गई, वहीं रामगंगा नदी पर बना झूला पुल 2017 से जर्जर हालत में है, लेकिन आज तक उसकी सुध नहीं ली गई।
हरीश ऐठानी ने कहा कि आपदा में जान गंवाने वालों को मुआवजे के नाम पर नाममात्र की राशि दी जाती है, उन्होंने इसे बढ़ाकर 20 से 25 लाख रुपये करने की मांग की।
ऐठानी ने चेताया कि यदि सरकार अब भी नहीं चेती, तो भविष्य में इसकी भारी कीमत चुकानी पड़ सकती है। उन्होंने जल्द भू-गर्भीय सर्वे, विस्थापन और जर्जर पुलों की मरम्मत के साथ आपदा प्रबंधन ढांचे को सुदृढ़ करने की मांग की।






