कपकोट (बागेश्वर):
पूर्व जिला पंचायत अध्यक्ष हरीश ऐठानी ने कपकोट विधानसभा के कालापैरकापड़ी गांव में निर्मित पुल की दुर्दशा को उजागर करते हुए जिला प्रशासन और सरकार पर जमकर निशाना साधा। उन्होंने कहा कि जिले में भ्रष्टाचार की जड़ें लगातार गहरी होती जा रही हैं और इसका ताजा उदाहरण वर्ष 2016 में स्वीकृत व 2019 में निर्मित झूलापुल है, जो मात्र छह वर्षों में ही गुणवत्ता की कमी और भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ गया।
पूर्व अध्यक्ष ने बताया कि यह झूलापुल, कालापैरकापड़ी गांव को मुख्य मोटर मार्ग से जोड़ने के उद्देश्य से बनाया गया था। लेकिन सरकार और ठेकेदार की मिलीभगत से घटिया निर्माण हुआ, जिससे पुल की स्थिति अत्यंत दयनीय हो चुकी है। ग्रामीणों की सुरक्षा को ताक पर रखकर इस प्रकार की लापरवाही सीधे तौर पर जनजीवन से खिलवाड़ है।
भकुना-नाचनी झूलापुल आठ वर्षों से अधर में
हरीश ऐठानी ने यह भी कहा कि वर्ष 2017 की आपदा में बहा भकुना-नाचनी झूलापुल आज तक नहीं बन पाया है। बीते आठ वर्षों में सरकार ने इस दिशा में कोई ठोस कदम नहीं उठाया, जिसके कारण आज भी ग्रामीण और स्कूली बच्चे जान जोखिम में डालकर नदी पार करने को मजबूर हैं।
उन्होंने कहा कि कई बार ट्रॉली के जरिए नदी पार करते समय हादसे होते-होते बचे हैं, लेकिन सरकार और प्रशासन को कोई फर्क नहीं पड़ रहा है। यह है कपकोट का विकास — जहां लोगों को आज भी मूलभूत सुविधाओं के लिए तरसना पड़ रहा है।
भ्रष्टाचार पर सख्त कार्रवाई की मांग
पूर्व जिला पंचायत अध्यक्ष ने सरकार और जिला प्रशासन से मांग की कि झूलापुल निर्माण में लिप्त अधिकारियों और ठेकेदारों के विरुद्ध तत्काल जांच हो और दोषियों पर कड़ी कार्रवाई की जाए। उन्होंने कहा कि भाजपा सरकार की कथनी और करनी में भारी अंतर है। जब भी भाजपा सत्ता में आती है, बिचला दानपुर क्षेत्र की हमेशा उपेक्षा होती है।
ग्रामीणों का आक्रोश बढ़ा
गांव के स्थानीय लोगों का भी कहना है कि झूलापुल टूटने से उनका संपर्क मार्ग बाधित हो गया है, और वे आपातकालीन स्थिति में भी अस्पताल या बाज़ार तक नहीं पहुंच पाते। स्कूली बच्चों की पढ़ाई भी प्रभावित हो रही है। ट्रॉली से नदी पार करना बेहद खतरनाक है, लेकिन मजबूरी में यही एक विकल्प बचा है।
कपकोट क्षेत्र में लगातार सामने आ रही अधोसंरचना विफलताओं ने यह साबित कर दिया है कि विकास की योजनाएं कागज़ों तक सीमित हैं, और जमीनी हकीकत कुछ और ही है। यदि समय रहते सरकार ने ठोस कदम नहीं उठाए, तो ग्रामीणों का आक्रोश व्यापक जनआंदोलन का रूप ले सकता है।






