logo

राज्य की द्वितीय राजभाषा संस्कृत के साथ सौतेला व्यवहार साइन बोर्ड और दीवारों में संस्कृत में नाम लिखने तक ही सीमित है जिम्मेदार विभाग।

खबर शेयर करें -

देवभूमि उत्तराखंड की द्वितीय राजभाषा घोषित किया गया था देववाणी संस्कृत को, करोड़ों की धनराशि खर्च कर दी स्कूलों, विभागों आदि के नाम को संस्कृत में लिखने के लिए, लेकिन धरातल पर जब संस्कृत की जड़ को मजबूत करने का समय आता है तो जिम्मेदार विभाग व अधिकारी इसकी ओर गंभीर नहीं दिखाई देते। इसकी एक बानगी देखने को मिली उत्तराखंड में SCERT द्वारा जारी गृह परीक्षा कार्यक्रम में। निदेशक माध्यमिक शिक्षा देहरादून के स्तर से जारी परीक्षा कार्यक्रम में 9 मार्च से 24 मार्च तक होनी हैं माध्यमिक विद्यालयों की वार्षिक गृह परीक्षा।
कक्षा 9 में 9 मार्च का दिन रिक्त होने के बावजूद संस्कृत का प्रश्न पत्र 24 मार्च को गृह विज्ञान के साथ एक ही दिन में द्वितीय पाली में रखा गया है,जबकि 9 मार्च को संस्कृत को एक पूरा दिन दिया जा सकता था।
कक्षा 6,7 व 8 की परीक्षा 9 मार्च से प्रारंभ कर 16 मार्च को समाप्त कर दी गई है। 1 दिन में दो प्रश्न पत्र होने हैं जबकि अंतिम परीक्षा 24 मार्च को होनी है। संस्कृत को रखा गया है विज्ञान के साथ 12 मार्च को।
निदेशक माध्यमिक शिक्षा के स्तर से 24 फरवरी 2022 को जारी परीक्षा कार्यक्रम में संस्कृत अनदेखी की गयी है।
कक्षा 6 ,7 व 8 के लिये 21 मार्च, 23 मार्च और 24 मार्च का दिन है रिक्त।
कक्षा 9 की संस्कृत की परीक्षा होनी है 24 मार्च को प्रथम पाली में गृह विज्ञान द्वितीय पाली में संस्कृत।
यहां भी 1 दिन में दो प्रश्न पत्र। समय रहते परीक्षा कार्यक्रम में संस्कृत को उचित स्थान दिया जाना चाहिए।
सोचनीय है कि जब वर्षभर छात्र-छात्राएं विद्यालयों में संस्कृत पढ़ते हैं तो परीक्षा के समय उसको कम महत्व क्यों दिया जाता है किसी अन्य विषय के साथ उसके प्रश्न पत्र का आयोजन कर करोड़ों रुपए खर्च कर द्वितीय राजभाषा घोषित की गई संस्कृत को कम आंकने की कोशिश तो नहीं है यह या यह एक गैर जिम्मेदाराना रवैया है।

Leave a Comment

Share on whatsapp