जिले के एकमात्र जीवित स्वाधीनता सेनानी आजाद हिंद फौज के जांबाज राम सिंह चौहान ने सौ वर्ष की उम्र पूरी कर ली है। जांबाज सेनानी अंग्रेजों से लोहा लेने के लिए आजादी के सशस्त्र आंदोलन में कूदे थे। तीन माह पहले भतीजे के निधन के कारण उन्होंने मंगलवार को अपना 100वां जन्मदिन नहीं मनाया।
गरुड़ के ग्राम वज्यूला निवासी वीर सैनिक तारा सिंह चौहान ने 1914-1918 तक हुए प्रथम विश्वयुद्ध की लड़ाई लड़ी थी। उनके घर में 22 फरवरी 1922 को जन्मे राम सिंह चौहान के खून में ही वीरता भरी है। पिता तारा सिंह वर्ष 1940 में गढ़वाल राइफल्स में पौड़ी गढ़वाल में तैनात थे। इसी दौरान राम सिंह भी गढ़वाल राइफल्स में भर्ती हो गए। देश में आजादी का आंदोलन चल रहा था। नेताजी सुभाष चंद्र बोस से प्रभावित राम सिंह चौहान वर्ष 1942 में अपने साथियों के साथ सशस्त्र आजाद हिंद फौज में शामिल हो गए। उन्होंने नेताजी के साथ मलाया, सिंगापुर, बर्मा आदि स्थानों पर देश की लड़ाई लड़ी। नेताजी के साथ मिलकर अंग्रेजों से दो-दो हाथ किए। अंग्रेजों की जेल में रहे। यातनाएं सहीं लेकिन अंग्रेजों के सामने झुके नहीं। देश आजाद हुआ। और वर्ष 1972 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने सेनानी राम सिंह को ताम्रपत्र देकर सम्मानित किया। राम सिंह पूरी तरह स्वस्थ हैं। अपने सारे काम स्वयं करते हैं। अब वह कान कम सुनते हैं। सेनानी राम सिंह देश की वर्तमान व्यवस्था से खिन्न हैं। वह भ्रष्टाचार को आजादी पर कलंक मानते हैं। तीन माह पहले उनके भतीजे राजेंद्र सिंह का निधन हुआ है। इस कारण परिजन उनका 100वां जन्मदिन नहीं मना पाए।
सेनानी के तीन पुत्रों का हो चुका है निधन। सेनानी राम सिंह चौहान के चार पुत्र थे। तीन पुत्रों पूरन सिंह, चंदन सिंह, आनंद सिंह का निधन हो चुका है। सेनानी के साथ चौथे पुत्र गिरीश चौहान रहते हैं। सेनानी पुत्र गिरीश चौहान सेनानी के गांव की खराब सड़क से व्यथित हैं। कहते हैं कि बदहाल सड़क में बरसात में वाहनों का संचालन मुश्किल हो जाता है। शासन, प्रशासन के लोग सेनानी और सेनानी के गांव की सुध नहीं लेते हैं।