नैनीताल हाईकोर्ट ने राज्य लोक सेवा आयोग की उत्तराखंड सम्मिलित सेवा, प्रवर सेवा के पदों के लिए आयोजित परीक्षा में उत्तराखंड मूल की महिला अभ्यर्थियों को 30 प्रतिशत क्षैतिज आरक्षण देने के 2006 के शासनादेश पर रोक लगा दी है। साथ ही हाईकोर्ट ने याचिकाकर्ताओं को आयोग की मुख्य परीक्षा में बैठने की अनुमति देने को कहा है।
मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति विपिन सांघी व न्यायमूर्ति आरएस खुल्बे की खंडपीठ में हरियाणा की पवित्रा चौहान की याचिका पर सुनवाई हुई, जिसमें आयोग की अक्टूबर में तय मुख्य परीक्षा में बैठने की अंतरिम अनुमति मांगी। याचिकर्ता के अनुसार विभिन्न विभागों के दो सौ से अधिक पदों के लिए प्रारंभिक परीक्षा का 26 मई 2022 को परिणाम आया। परीक्षा में अनारक्षित श्रेणी की दो कट आफ लिस्ट निकाली गई। उत्तराखंड मूल की महिला अभ्यर्थियों की कट आफ 79 थी, जबकि याचिकाकर्ता महिला का कहना था कि उनके अंक 79 से अधिक थे, मगर उन्हें अयोग्य करार दे दिया गया।
याचिकाकर्ता के अधिवक्ता कार्तिकेय हरिगुप्ता ने कहा कि राज्य सरकार की ओर से 18 जुलाई 2001 और 24 जुलाई 2006 के शासनादेश के अनुसार, उत्तराखंड मूल की महिलाओं को 30 प्रतिशत क्षैतिज आरक्षण दिया जा रहा है, जो असंवैधानिक है। संविधान के अनुच्छेद-15 व 16 के अनुसार आवास के आधार पर कोई राज्य आरक्षण नहीं दे सकता, यह अधिकार केवल संसद को है। राज्य केवल आर्थिक रूप से कमजोर व पिछले तबके को आरक्षण दे सकता है। सरकार की ओर से कहा गया कि राज्य की महिलाओं को आरक्षण दिया जाना संविधानसम्मत है।