तिब्बत भारत व्यापार के वक्त से चला आ रहा व्यापार आज अपने अस्तित्व को बचाने की जद्दोजहद कर रहा है। अनवाल अब कुछ ही संख्या में अपने कारोबार को बचाए हुए है। करीब 150 साल पुराने कारोबार में आज नई पीढ़ी भी कोसो दूर भाग रही है। सरकारी सुविधाओं और सरकार का सहयोग नही मिलने से कारोबार आज डूबने की स्थिति में है।
700 भेड़ों लेकर गौलापार (हल्द्वानी) से 23 दिन पहले चला अनवाल (भेड़ चरवाहे) का दल विभिन पड़ावों को पार करते हुए शुक्रवार को बागेश्वर पहुंचा। दल को मुनस्यारी पहुंचने में करीब 10 दिन का समय और लगेगा। जुलाई तक मुनस्यारी में रहने के बाद दल जोहार के बुग्यालों की ओर प्रस्थान कर जाएंगे। सितंबर के अंत में बुग्यालों से नीचे उतरकर, नवंबर में फिर से भाबर की यात्रा शुरु हो जाएगी।
अनवालों का जीवन गर्मियों में मुनस्यारी के बुग्यालों में कटता है तो सर्दियां आते ही गौलापार के जंगलों को यह अपना ठिकाना बना लेते हैं। नवंबर में अनवालों का दल भेड़ों का झुंड लेेकर मुनस्यारी से गौलापार की यात्रा पर निकल पड़ता है। बागेश्वर जिले से होकर केवल रातिरकेटी के मलक सिंह का दल ही गुजरता है। मलक सिंह पिछले 50 साल से चरवाहे का काम कर रहे हैं। उनके दल में भेड़ों के अलावा तीन भोटिया प्रजाति के कुत्ते, सामान ढोने के लिए आठ घोड़े और चार कर्मचारी शामिल रहते हैं।
अनवाल मलक सिंह, पुष्कर सिंह बताते हैं कि रास्ते में अराजक तत्वों के साथ वन कर्मी भी उनके लिए परेशानी खड़ी करते हैं। जंगल के जिन स्थानों पर वह दशकों से अपना पड़ाव बनाते आए हैं, वहां रुकने पर वन विभाग के कर्मचारी धमकाने लगते हैं और परमिट मांगते हैं। एक ओर सरकार भेड़, बकरी पालन को बढ़ावा देने की बात करती है, लेकिन सबसे बड़े भेड़ पालकों को सरकारी योजनाओं का लाभ तक नहीं मिल पाता है। सुरक्षा और सुविधाएं नहीं मिलने से नई पीढ़ी इस काम से मुुंह मोड़ने लगी है।
वही जोहार समुदाय से जुड़े प्रयाग सिंह ने बताया की कुछ अनवाल आज भी हमारी संस्कृति को बचाए हुए है। भारत तिब्बत व्यापार के समय मवेशियों से ही मुख्य व्यापार था। आज आधुनिकता की दौड़ में काफी बदलाव हो गया है। इनका जीवन खानाबदोश का जीवन रहा है। इनके लिए आमजन से लेकर वन विभाग और वन पंचायत को भी
इनका सहयोग करना होगा। इनके कार्य को सम्मान देने की जरूरत है। वही प्रयाग सिंह के द्वारा अपनी माता की और से दादी की स्मृति में सभी अनवालो को पहाड़ी टोपी और इलैक्ट्रिक लालटेन आदि देकर उनका सम्मान भी किया। उन्होंने कहा की सभी को इनको सम्मान देने की जरूरत है जिससे अपनी सदियों पुरानी संस्कृति को हम बचा सकते है।