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दर्द का संन्यासी,जिसने अपना सब कुछ खोकर औरों का सहारा बनना चुना

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बागेश्वर : मुंबई की भागती दौड़ती ज़िंदगी के बीच, माटुंगा के एक कोने में एक शख़्स रहते थे, डॉ. बी.के. गुरूजी. नाम के आगे “डॉ.” ज़रूर जुड़ा था, पर उनके लिए डॉक्टरी महज़ डिग्री नहीं, बल्कि एक साधना थी. जसलोक अस्पताल में मर्म चिकित्सा के ज़रिए हजारों लोगों का दर्द हरने वाला यह शख़्स, कभी फिल्म निर्माता था, कभी करोड़ों का दानी और कभी लता मंगेशकर की प्रशंसा का पात्र. बाल ठाकरे ने मातोश्री में बुलाकर सम्मान दिया और आचार्य बालकृष्ण सात बार पतंजलि में उन्हें आमंत्रित करते रहे. पर उनका जवाब हमेशा विनम्र होता, “मैंने सेवा को कभी व्यवसाय नहीं बनाया..”
पर फिर आया कोरोना…
उस भयानक काल में गुरूजी ने अपने पूरे परिवार को खो दिया. वह हंसता-खेलता घर, वह प्रेमिल रिश्ते, वह अपनापन… सब जैसे राख हो गए. अस्पताल की दीवारों के पीछे अब दर्द सुनाई नहीं देता था, बल्कि एक भयानक सन्नाटा छा गया था. सबकुछ त्याग कर चल पड़े पहाड़ों की ओर, मानवता की तलाश में, अपनी टूट चुकी आत्मा के मरहम की खोज में.
देहरादून में एक कार्यक्रम में उनकी मुलाकात वृक्ष पुरूष किशन मलड़ा से हुई, एक ऐसा शख़्स जो जंगलों में पेड़ लगाता रहा और शहरों में चर्चा का विषय बना. मलड़ाजी ने उन्हें एक बात कही, जिसने गुरूजी की नियति बदल दी, “गुरूजी, पहाड़ों में लोग पहाड़ सा दर्द सहते हैं… पर इलाज नहीं मिल पाता है..”
बस, इतना सुनना था, गुरूजी ने तय कर लिया, यही मेरी अगली यात्रा है.
बागेश्वर, कांडा रोड पर एक छोटा सा होटल है, प्रशांत होटल. उसी के एक कमरे में उन्होंने अपना आश्रम बना लिया और ‘श्री बागनाथ दर्द मुक्ति केन्द्र’ की स्थापना की. न ज्यादा बोर्ड लगे, न बैनर, बस सादगी और सेवा का भाव.
हर मरीज को डेढ़-डेढ़ घंटे समय देना, मर्म के बिंदुओं को पहचानना, दर्द को छूकर बाहर निकालना… ये अब उनकी दिनचर्या बन गई है. कुछ महिलाओं को भी मर्म चिकित्सा सिखा दिया, जिन्हें अब रोजगार भी मिल गया और जीवन में उद्देश्य भी.
आज गुरूजी न तो किसी बड़े ओहदे पर हैं, न बड़े मंच पर. पर उनके पास वो ताकत है जो करोड़ों में भी नहीं, दूसरों का दर्द समझने की शक्ति.
उन्होंने अब तय किया है कि 25 अगस्त को गरुड़ के पुरड़ा स्थित सीआईएटी संस्थान में किसानों और उद्यमियों को निःशुल्क प्रशिक्षण देंगे. स्टीविया, रोजमेरी, लेमन ग्रास जैसे पौधों से खेती में क्रांति लाने का सपना है उनका. उनका मानना है, स्वास्थ्य और सम्मान ही असली समृद्धि हैं, शराब और गुटखा नहीं.
डॉ. बी के गुरूजी की आंखों में अब कोई निजी आकांक्षा नहीं, बस एक संकल्प है, जहां भी दर्द होगा… वहां मेरी हथेली पहुंचेगी.
यह छोटी सी कहानी उस इंसान की है जिसने दौलत, यश, और आराम सबकुछ खोकर भी, दूसरों के दर्द का संन्यासी बनकर खुद को पा लिया.

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