प्रकटेश्वर सृजन मंच के तत्वाधान में काव्य गोष्ठी का आयोजन किया गया। मंच से जुड़े कवियों ने अपनी कविताओं के माध्यम से समाज के हर पहलू को छूने की कोशिश की।
काव्य गोष्ठी का शुभारंभ विनोद प्रकाश ने अपनी कविता फिर आ गया हूं मैं तेरे ख्वाबों में चुपचाप.. से की। डॉ. जितेंद्र तिवारी ने कवि मन जब जेठ की दुपहरी में तपता है, तब जाके कविता का एक सावन बरसता है पेश कर कविता की गहराई को बयां किया। दीप चंद्र जोशी ने पीली-पीली सरसों फूली, फूला हरश्रृंगार के माध्यम से रितुराज बसंत के महत्व को रखा। डॉ. केएस रावत ने मैं कहीं भी रहूं, मगर जमीं पर रहूं सुनाकर हर हालात में एक समान रहने की सीख दी। सौरभ भट्ट ने मौन हैं मेरे अधर अब, गीत की लय किधर कब प्रस्तुत की। भाष्कर सिंह ने तन्हाई तो मेरी परछाई है, महफिलें तो ये मेरी पराई हैं सुनाकर एकाकी जीवन के पक्ष को रखा। कविता पाठ का समापन करते हुए डॉ. राजीव जोशी ने अपनी गजल आंखों की तेरी झील में उतरेंगे किसी दिन, सोचेंगे तुुझे ख्वाब में समझेंगे किसी दिन प्रस्तुत की। कार्यक्रम में वरिष्ठ कवि केशवानंद जोशी के कुमाउनी काव्य संग्रह मनसुब का विमोचन भी किया गया।