गुलदार ने बुजुर्ग महिला पर किया हमला, 60 टांकों के बाद बची महिला की जान
बागेश्वर : जिले की कांडा तहसील के सानीउडयार न्याय क्षेत्र अंतर्गत पतौंजा गांव में मंगलवार रात्रि एक दर्दनाक घटना सामने आई, जब 55 वर्षीय महिला गोविंदी देवी पत्नी मदन सिंह पर गुलदार ने उनके ही आंगन में घात लगाकर हमला कर दिया। रात करीब 9:30 बजे भोजन कक्ष से शयन कक्ष की ओर जाते समय अचानक हुए हमले में महिला बुरी तरह जख्मी हो गईं। गुलदार ने कान फाड़ दिया, जबकि सिर, हाथ-पैर और शरीर के अन्य हिस्सों में गंभीर घाव बनाए। महिला ने साहस का परिचय देते हुए गुलदार से संघर्ष किया, और अंततः पड़ोसियों के शोर-शराबे के बाद वह भाग निकला।
पीड़िता को तत्काल कांडा अस्पताल और फिर जिला अस्पताल बागेश्वर में भर्ती कराया गया, जहां डॉक्टरों ने शरीर पर 60 से अधिक टांके लगाए हैं। उनकी हालत अब स्थिर बताई जा रही है, लेकिन मानसिक रूप से वे गहरे सदमे में हैं।
गांव में दहशत, वन विभाग की तैयारी
घटना के बाद गांव में भय और आक्रोश दोनों का माहौल है। पूर्व ग्राम प्रधान गोकुलानंद मिश्रा ने वन विभाग को तत्काल सूचना दी और गांव में पिंजरा लगाने तथा गुलदार की सक्रियता पर निगरानी की मांग की। वन विभाग के धरमघर रेंजर दीप चंद्र जोशी ने जानकारी दी कि विभाग की टीम गांव में पहुंचकर ट्रैप कैमरे लगाएगी और गुलदार को पकड़ने के प्रयास शुरू किए जाएंगे। साथ ही, उन्होंने आश्वासन दिया कि मेडिकल रिपोर्ट प्राप्त होने के बाद मुआवजे की प्रक्रिया भी शुरू की जाएगी।
पहले भी हो चुकी है ऐसी घटनाएं
यह कोई पहली घटना नहीं है। कुछ ही दिन पूर्व पास के घोड़ागाड़ कपूरी गांव में भी एक महिला पर गुलदार ने हमला किया था और उसे घर से लगभग 15 मीटर दूर तक खींच ले गया था। यह लगातार हो रही घटनाएं क्षेत्र में मानव-वन्यजीव संघर्ष की गंभीरता को दर्शाती हैं।
सामाजिक कार्यकर्ता आए आगे
गांव के सामाजिक कार्यकर्ता दरपान बिष्ट और केवलानंद पांडेय ने पीड़ित परिवार की आर्थिक स्थिति को दयनीय बताते हुए जिलाधिकारी बागेश्वर आशीष भटगाई से फोन पर संपर्क कर राहत एवं पुनर्वास की मांग की। उन्होंने गांव में स्थायी रूप से गश्त, पिंजरा, और जागरूकता अभियान चलाने की अपील भी की है।
प्रशासन का भरोसा, ग्रामीणों से सतर्कता की अपील
जिलाधिकारी आशीष भटगाई ने ग्रामीणों को सांत्वना और आश्वासन दोनों दिए हैं। उन्होंने वन विभाग को आवश्यक कार्रवाई करने के निर्देश दिए हैं। वहीं, ग्रामीणों से विशेष रूप से महिलाओं और बच्चों को अकेले बाहर न निकलने की सलाह दी गई है।
आखिर कब रुकेगा यह संघर्ष?
क्षेत्र में लगातार बढ़ रहे गुलदार के हमलों ने ग्रामीणों की नवीनतम सुरक्षा व्यवस्था, वन विभाग की निगरानी क्षमता, और प्राकृतिक संसाधनों के दोहन से उपजे असंतुलन पर सवाल खड़े कर दिए हैं। क्या अब समय नहीं आ गया है कि पहाड़ी क्षेत्रों में बढ़ते मानव-वन्यजीव संघर्ष को गंभीरता से लिया जाए?






