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नशा व्यक्ति ही नहीं पूरे समाज व परिवार की तबाही का कारण बनता है।

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नशा जानलेवा बीमारी है, किसी भी नशीले पदार्थ का सेवन नशेड़ी व्यक्ति की ही नहीं, बल्कि पूरे समाज की तबाही का कारण बनता है। इसलिए सभी समाजसेवी संस्थाओं, प्रबुद्ध नागरिकों विशेषकर युवाओ को नशामुक्ति अभियान को एक आदोलन का रूप देकर पूरे समाज में नशे के खिलाफ जनजागरण चलाना चाहिए आज ग्रामीण क्षेत्र का प्रत्येक व्यक्ति विशेषकर मध्यम वर्ग का युवा चरस, गाजा, अफीम, जर्दा तथा शराब जैसे नशीले पदार्थो का आदी होता जा रहा है। इससे नशा करने वाले व्यक्ति के जीवन की तबाही तो निश्चित है ही, साथ ही नशेड़ी का परिवार व आस-पास का समाज भी इसके कारण होने वाली बर्बादी के कुपरिणामों से प्रभावित होता है। तम्बाकू, शराब व स्मैक से भी अधिक खतरनाक नशे की लत शहर के किशोरावस्था वाले बच्चों और युवाओं में घर करता जा रहा है। यह सस्ता होने के कारण हर किसी की पहुंच में भी है और आसानी से मिल रहा है। देवभूमि उत्तराखंड में रहने वाले 14 से 20 साल तक बच्चे और युवा इस नशे की गिरफ्त में आ चुके हैं। ये बच्चे ना तो स्कूल जाते हैं और ना इन पर किसी का दबाव है। किशोर अवस्था यानी 12 से 18 साल के बच्चों में यह नशा तेजी से फैल रहा है। इस नशे की गिरफ्त में गरीब परिवार के बच्चे अधिक आ रहे हैं। इन बच्चों को स्मैक,गांजा,अफीम आसानी से मिल जाते हैं, इस तरह का नशा पहले बड़े शहरों में फैला हुआ था। लेकिन, अब यह नशा तेजी से उत्तराखंड के पहाड़ी इलाकों में फैल रहा है। इस तरह के नशे से बालक व युवाओं का मानसिक विकास रूक जाता है। उसका शरीर अपने आप ही कुरूप होता जाता है। इतना ही नहीं अगर इसका ज्यादा डोज ले लिया जाए तो नशेडी लम्बी बेहोशी में भी चला जाता है, जिससे उसकी मौत हो सकती है।
नशा पूरे परिवार की बर्बादी का कारण बनता है। इस बर्बादी को रोकने के लिए महिलाओं का ज्यादा जागरूक होता अत्यंत जरूरी है। चूंकि किसी भी व्यक्ति के नशे के आदी होने पर सबसे ज्यादा उसके बच्चे विशेषकर उसकी पत्‍‌नी, मा व बहन प्रभावित होती है, जिनकी जिंदगी में कभी हौसले व खुशी की कोई उम्मीद नहीं रहती। इसलिए उन महिलाओ को जो शराबी या नशेड़ी व्यक्ति के परिवार से बतौर पत्‍‌नी, बहन या मा संबंध रखती है, नशा मुक्ति अभियान से जुड़ना चाहिए और पुलिस को स्पष्ट नहीं तो खुफिया तौर पर जानकारी अवश्य देनी चाहिए।

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