सनातन परंपरा में आंचलिक संस्कृतियों के अनुरूप विभिन्न तरह के आयोजनों की विविधता देखने को मिलती है इसी तरह की एक विविधता पीपल – वट वृक्ष विवाह का आयोजन आगामी २१मई को यहां मयूँ ग्राम में होने जा रहा है।
हिंदू धर्म शास्त्रों में पीपल व वट वृक्षों को विशेष मान्यता प्राप्त है। वृक्ष पूजन सनातन संस्कृति का एक अभिन्न अंग है वर्ष पर्यन्त तुलसी,पीपल,वट सावित्री को वट वृक्ष पूजन इस परंपरा को न केवल स्मृद्घ करते हैं बल्कि समाज को पर्यावरण संरक्षण का संदेश भी देते हैं।
बागेश्वर जनपद के मयूँ ग्राम के दिवंगत धर्मानंद फुलारा की पत्नी श्रीमती बसन्ती फुलारा अपने परिवार के साथ दिल्ली में रहती हैं पर पहाड़ के साथ इस परिवार का सतत जुड़ाव रहा है। श्रीमती फुलारा ने बताया कि उनकी वृद्धा ननद श्रीमती मोहिनी देवी को भगवदकृपा से यह सद्प्रेरणा प्राप्त हुई है और २१ मई नृसिंह चतुर्दशी के दिन मयूँ ग्राम में यह दिव्य आयोजन होने जा रहा है।
इस अनूठे वैवाहिक अनुष्ठान की तैयारियों में जुटे कमलकांत फुलारा,हरीश चंद्र फुलारा,और प्रभा जोशी बताते हैं कि इस आयोजन के बहाने उनका पारिवारिक दायित्व तो पूरा होगा ही साथ में पर्यावरण संरक्षण का सामाजिक संदेश भी प्रसारित होगा। उन्होंने समस्त क्षेत्र वासियों से इस अनूठे और विशुद्ध सनातनी आयोजन का साक्षी बनने का आह्वान भी किया है।
ज्ञातव्य है कि इस कार्यक्रम की आयोजक श्रीमती बसन्ती फुलारा अपनी छोटी बहिन श्रीमती वैजयंती जोशी के साथ वर्ष २०१३ की केदार आपदा दौरान केदारनाथ में फंसी रही थी और सकुशल लौट आई थी।ये दोनों वृद्धा बहिनें इस आयोजन में मौजूद रहेंगी।
शास्त्र सम्मत है पीपल वृक्ष विवाह
ज्योतिषाचार्य कैलाश चंद्र सुयाल ने बताया कि अश्वत्थ, पीपल का संस्कृत नाम है। सनातनी इसे पवित्र वृक्ष मानते हैं। हिन्दू धर्मग्रन्थों में इसका बहुत उल्लेख मिलता है। ऋग्वेद में इसे पीपल कहा गया है। बौद्ध ग्रन्थ इसे ‘बोधि वृक्ष’ कहते हैं। हिंदू सनातन संस्कृति में वृक्ष पूजन का विशेष महत्व है।गीता में भगवान श्री कृष्ण ने कहा था “अश्वत्थ सर्ववृक्षाणाम” अर्थात मैं सब वृक्षों में पीपल हूं। विवाहित पीपल वृक्ष के पूजन की ही परंपरा शास्त्र सम्मत है।
पीपल वृक्ष का विशद पर्यावरणीय योगदान है।
हरीश जोशी पर्यावरणविद एवम लेखक बताते है कि सनातन संस्कृति में पर्यावरणीय महत्व के पौंध और वनस्पति के पूजन की परंपरा से इन्हें संरक्षण प्राप्त होता है। पीपल को वैज्ञानिक शब्दावली में फाईकस रेलीजियोसा नाम से जाना जाता है। पीपल वायुमंडल में सर्वाधिक कार्बन डाइऑक्साइड अवशोषक वनस्पति है अर्थात यह अधिकतम प्राणवायु ऑक्सीजन का संचार करता है। वट वृक्ष भी अवश्य ही प्राणवायु प्रदाता है इसीलिए वट सावित्री व्रत पूजा में वट वृक्ष के नीचे ही सावित्री के सतीत्व से सत्यवान की मृतप्राय देह के पुनर्जीवित होने का दृष्टांत मिलता है।
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