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मेरा रेशम मेरा अभिमान अभियान से आत्मनिर्भरता की राह पर बागेश्वर के किसान

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बागेश्वर। केंद्रीय रेशम बोर्ड के सभागार में मंगलवार को “मेरा रेशम मेरा अभिमान” कार्यक्रम का आयोजन किया गया। कार्यक्रम में जनपद के किसानों को रेशम एवं मुगा रेशम की खेती से जुड़ने के लिए प्रेरित किया गया। विशेषज्ञों ने बताया कि रेशम उत्पादन न केवल स्वरोजगार का बेहतर साधन है, बल्कि पर्यावरण संरक्षण और स्वस्थ जीवनशैली को भी बढ़ावा देता है।

कार्यक्रम के मुख्य अतिथि किशन सिंह मलड़ा ने किसानों से रेशम की खेती को अपनाने की अपील करते हुए कहा कि पहाड़ की प्रकृति रेशम उत्पादन के लिए उपयुक्त है। उन्होंने बताया कि वह स्वयं अपनी मुगा वाटिका में इस वर्ष तीसरी फसल ले रहे हैं और साल में चार फसल तक लेने का प्रयास कर रहे हैं। उन्होंने किसानों को देवकी लघु वाटिका में आमंत्रित करते हुए मुगा रेशम की बारीकियों को समझने की बात कही।

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उन्होंने कहा कि शहतूत, बांज, मणिपुरी बांज, अर्जुन, कौल, बेदु और तेजपत्ता जैसे वृक्षों से रेशम उत्पादन किया जा सकता है। बस जरूरत है इनके संरक्षण और सुनियोजित खेती की।

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केंद्रीय वैज्ञानिक सहदेव चौहान ने कहा कि उत्तराखंड की आबोहवा अन्य राज्यों की तुलना में रेशम और मुगा रेशम उत्पादन के लिए बेहद अनुकूल है। उन्होंने किसानों और युवाओं से अधिक से अधिक संख्या में इस खेती से जुड़ने और स्वरोजगार के अवसर बढ़ाने की अपील की।

प्रभारी निरीक्षक वृजेश रतुड़ी ने जानकारी दी कि बागेश्वर में मुगा रेशम की खेती पर 35 प्रतिशत उत्पादन में सफलता मिली है। उन्होंने युवाओं और बेरोजगारों को विभागीय योजनाओं का लाभ उठाकर रोजगार सृजन करने के लिए आगे आने को कहा।

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सह प्रभारी कमलेश कुमार ने किसानों को रेशम पालन में बरती जाने वाली सावधानियों की जानकारी दी और बताया कि उचित तकनीक अपनाकर उत्पादन को कई गुना बढ़ाया जा सकता है।

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