स्टोरी (कमल जगाती,नैनीताल)
विधानसभा चुनाव से ठीक पहले भाजपा को बड़ा झटका लगा है. नैनीताल हाईकोर्ट ने श्रीनगर पालिका को भंग करने के राज्य सरकार के आदेश पर रोक लगा दी है. साथ ही हाईकोर्ट ने इस मामले में सरकार को चार सप्ताह के भीतर जवाब दाखिल करने के निर्देश दिए हैं.
मामले के अनुसार श्रीनगर नगर पालिकाध्यक्ष पूनम तिवारी ने हाईकोर्ट में दो अलग-अलग याचिकाएं दायर कर सरकार की दो अधिसूचनाओं को चुनौती दी थी. जिसमें पहली याचिका में उन्होंने सरकार द्वारा 31 दिसम्बर को जारी आदेश को निरस्त करने की मांग की थी. इस आदेश में सरकार ने श्रीनगर पालिका को नगर निगम का दर्जा दिया था. याचिकाकर्ता ने कहा नगर निगम बनाने के लिये निकाय की आबादी 90 हजार से अधिक होनी चाहिये जो श्रीनगर में अभी नहीं है. श्रीनगर की आबादी 37 हजार के करीब है. यह मामला कोर्ट में विचाराधीन है.
दूसरे आदेश में सरकार ने 3 जनवरी को श्रीनगर नगरपालिका को भंग कर दिया था. इस याचिका में उन्होंने सरकार के पालिका को भंग करने के आदेश को चुनौती दी थी. जिस पर हाईकोर्ट ने रोक लगा दी है. मामले की सुनवाई कार्यवाहक मुख्य न्यायधीश संजय कुमार मिश्रा की एकलपीठ में हुई.
नगर निगम बनाने के लिए पहाड़ी क्षेत्रों में एक लाख की जनसंख्या का आंकड़ा होता है. साल 2011 कि मतगणना के अनुसार श्रीनगर की जनसंख्या 33,449 हजार थी. धामी कैबिनेट ने नगर पालिका परिषद श्रीनगर को नगर नगम में तब्दील करने के लिए क्षेत्र में 21 और गांवों को जोड़ा. इन गांवों के शामिल होने के बाद नगर निगम क्षेत्र की जनसंख्या बढ़कर 37,911 हो रही है. ऐसे में श्रीनगर पर्वतीय क्षेत्र होने के नाते जनसंख्या के हिसाब से नगर निगम घोषित किए जाने के मानदंड में 37 हजार से अधिक और 50 हजार से कम श्रेणी वाले में आ गया है. इसके बाद भी ये संख्या मानकों को पूरा नहीं करती. जिसके बाद भी श्रीनगर को नगर निगम बनाने का शासनादेश जारी कर दिया गया.
बता दें श्रीनगर पालिका पर इस वक्त कांग्रेस का कब्जा है. इसलिए ये मामला बीजेपी के लिए नाक का सवाल बन गया है. कैबिनेट मंत्री धन सिंह रावत के प्रयासों के बाद तमाम मानकों में पिछड़ने के बाद भी सरकार ने श्रीनगर को नगर निगम का दर्जा देते हुए विधानसभा चुनाव से पहले बढ़त हासिल की. सरकार के नगर निगम बनाने के आदेश और पालिका को भंग करने को कांग्रेस ने हाईकोर्ट में चुनौती दी. जहां से उसे झटका लगा है.