logo

आदिकालीन है बदियाकोट में श्री आदि बद्री भगवती माता का मंदिर

खबर शेयर करें -

बदियाकोट में स्थित श्री आदि बद्री भगवती माता मंदिर का विशेष महत्व है। कहा जाता है कि मां भगवती ने निशुम्भ नामक दैत्य का वध इसी मंदिर के पास किया था, जबकि शुम्भ दैत्य का वध सुमगढ़ नामक स्थान पर किया था।

इसी कारण बाद में इसे सुमगढ़ कहा जाने लगा। दैत्यों का वध करने के कारण ही इसे पुराणों में वध कोट के नाम से वर्णित किया गया है। कपकोट के उच्च हिमालयी क्षेत्र में स्थित बदियाकोट का भगवती माता मंदिर आदिकालीन है।

इस मंदिर में हर साल नवरात्र में विशेष पूजा-अर्चना की जाती है। मान्यता है कि आदि काल में माता भगवती ने गढ़वाल में मृग का रूप धारण किया। मृग का शिकार करने के लिए छलि और बलि नामक दो पुरुषों ने उस मृग का पीछा किया।

मृग का पीछा करते-करते वे बदियाकोट पहुंच गए। जब वह छोटी पहाड़ी पर पहुंचे तो वहां पर माता ने उन्हें कन्या के रूप में दर्शन दिए। उन दोनों पुुरुषों को पूर्व का वृत्तांत बताते हुए उस स्थान पर सिद्ध पीठ की स्थापना करने और उनको पुजारी नियुक्त कर स्वयं अंतर्ध्यान हो गईं। कालांतर में छलि और बलि के छह-छह पुत्र हुए।

बाद में उनको क्षेत्र में इतनी प्रसिद्धि मिली कि बार बदकोटी के नाम से उनकी पूजा होने लगी। यही लोग दानू वंश के पूर्वज भी माने जाते हैं। दानपुर क्षेत्र के बाछम, पोथिंग आदि स्थानों पर भी नंदा माता के मंदिर के साथ इन 12 भाइयों की पूजा भी की जाती है। बता दें कि बदियाकोट स्थित भगवती मंदिर के गर्भगृह से पहाड़ी के अंदर सुरंग है। यह सुरंग करीब डेढ़ सौ मीटर नीचे स्थित गधेरे में निकलती है।

मंदिर में सोराग, किलपारा, बाछम, खाती, तीख, डौला, कुवांरी, बोरबलड़ा, पेठी और सापुली गांवों के लोग परंपरा के अनुरूप नंदाजात के समय चढ़ावा ले जाते हैं। 12 वर्ष में होने वाली नंदा राजजात में नंदा कुंड तक पैदल यात्रा छंतोली के साथ होती है।

Leave a Comment

Share on whatsapp